सुबह कभी खेत में फसल के बीच क्यारियों में देखता हूँ तो तुम्हारी बातों के सौंधेपन के साथ जिंदगी का हरापन भी नज़र आ ही जाता है...। सोचता हूँ मुस्कान और हरेपन में कोई रिश्ता है तभी तो दोनों एक नेक समाज को गढ़ते हैं। फसल की क्यारी के बीच मिट्टी की महक घर की तरह होती है। घर और खेत की मिट्टी में एक मानवीय रिश्ता है जो केवल महकता है और महसूस किया जा सकता है...। कभी उस मिट्टी पर पैरों को गहरे गढ़ाकर खूब खेला करते थे, बारिश में बचपन के वो कच्चे मकान आज तक टिके हैं...। मन उन बचपन के कच्चे घरों में आज भी बसता है, तुम्हें बताऊँ क्योंकि तुम जीवन का हिस्सा हो और मिट्टी भी हमारे जीवन अहम भाग है...। आओ बचपन के घर तक घूम आते हैं, दोनों...क्या पता बचपन के साथी भी रास्ते में मिल जाएं...। तुम बतियाती रहना क्योंकि वो हरापन लिए होता है...। खेत पर टहलते हुए कुछ यादें अब भी महकती हैं...।
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ये सौंधापन तुम्हारी बातों जैसा है
सुबह कभी खेत में फसल के बीच क्यारियों में देखता हूँ तो तुम्हारी बातों के सौंधेपन के साथ जिंदगी का हरापन भी नज़र आ ही जाता है...। सोचता हूँ मुस्कान और हरेपन में कोई रिश्ता है तभी तो दोनों एक नेक समाज को गढ़ते हैं। फसल की क्यारी के बीच मिट्टी की महक घर की तरह होती है। घर और खेत की मिट्टी में एक मानवीय रिश्ता है जो केवल महकता है और महसूस किया जा सकता है...। कभी उस मिट्टी पर पैरों को गहरे गढ़ाकर खूब खेला करते थे, बारिश में बचपन के वो कच्चे मकान आज तक टिके हैं...। मन उन बचपन के कच्चे घरों में आज भी बसता है, तुम्हें बताऊँ क्योंकि तुम जीवन का हिस्सा हो और मिट्टी भी हमारे जीवन अहम भाग है...। आओ बचपन के घर तक घूम आते हैं, दोनों...क्या पता बचपन के साथी भी रास्ते में मिल जाएं...। तुम बतियाती रहना क्योंकि वो हरापन लिए होता है...। खेत पर टहलते हुए कुछ यादें अब भी महकती हैं...।
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बहुत ही सुंदर .. ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है।
जवाब देंहटाएंअनंत शुभकामनाएं
जी आभार आपका सीमा जी...। ब्लॉग आपकी वजह से संभव हो पाया है सदा आपका आभारी रहूंगा।
हटाएंगूगल फालोव्हर कको गेजेट लगाइए
जवाब देंहटाएंसादर
जी यशोदा जी...। आभार आपका और आपका सहयोग भी प्रार्थनीय है।
हटाएंगूगल फालोव्हर का गेजेट लगाइए
जवाब देंहटाएंजी यशोदा जी...।
हटाएंब्लॉग सेटिंग कीजिए
जवाब देंहटाएंहर किसी को नहीं दिखेगा
जी
जवाब देंहटाएंSensitive Content Warning
जवाब देंहटाएंThis blog may contain sensitive content. In general, Google does not review nor do we endorse the content of this or any blog. For more information about our content policies, please visit the Blogger Community Guildelines.
I UNDERSTAND AND I WISH TO CONTINUE... I do not wish to continue
कृपया सेटिंग में जाकर.इसकी सेटिंग करें।।
जी अवश्य।
हटाएंयशोदा जी अब तक आपका बहुत सहयोग मिला है, लेकिन एक और सहयोग चाहिए कि मैं दूसरे साथी ब्लॉगर की पोस्ट देख पा रहा हूं लेकिन उन्हें कमेंट नहीं कर पा रहा हूं...कैसे संभव हो पाएगा कृपया मार्गदर्शन कीजिएगा....। आभार आपका
हटाएंकवितानुमा आलेख..
जवाब देंहटाएंसादर..
आभार आपका
हटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 22 जनवरी 2021 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत आभार आपका...। सहयोग बनाए रखियेगा।
हटाएंबहुत बढ़िया लिखा सर। आपको बधाई।
जवाब देंहटाएंबहुत आभार आपका सर।
हटाएंबहुत ही भावपूर्ण लेख है संदीप जी. माटी की महक से सराबोर मन का संवाद और सुंदर उद्बोधन बहुत रोचक और भावों से भरा हुआ है.
जवाब देंहटाएंरेणु जी बहुत आभार...। सहयोग बनाए रखियेगा।
हटाएंअपनी ओर आकर्षित करती हुई आपकी लेखनी हेतु बधाई।
जवाब देंहटाएंबहुत आभार पुरुषोत्तम जी। सहयोग बनाए रखियेगा।
हटाएंअति सुन्दर सृजन।
जवाब देंहटाएंबहुत आभार शांतनु जी। सहयोग बनाए रखियेगा।
हटाएंवाह सचमुच गद्य में पद्य जैसी सरस अनुभूति।
जवाब देंहटाएंसौंधी माटी जैसी।
स्वागत है आपका अपनों के बीच।
सुंदर सृजन।
बहुत आभार। सहयोग बनाए रखियेगा।
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