ठूंठ एक थके आदमी का मन है


 जब भी किसी ठूंठ पर अंकुरण देखता हूँ, मेरा भरोसा हर बार प्रबल होता है कि थका हुआ और थकाया गया व्यक्ति अवश्य जीतता है। ये जो अंकुरण है उस थके आदमी की हौले से ली गई मुस्कान है, जो वो नीम की छांह में, अकेले अपनी झोपड़ी के कच्चे दालान में या अपने बच्चों के सिर पर हाथ फेरते हुए अभिव्यक्त करता है। मैं सोचता हूँ एक सख्त ठूंठ एक थके आदमी का मन है, शरीर भी हो सकता है। एक जीतता आदमी वाकई अंकुरण सा खूबसूरत लगता है...। मैं पौधों की जात पहचानता हूँ, वे एक ही हैं हम जैसे। जैसे कि एक आदमी होता है, वो हर बार, कई बार, सदियों उगता है अपने अंदर...। सूखता है, पत्तों सा झरता है, खाद हो जाता है फिर अंकुरित हो उठता है...। अंकुरण और आदमी में एक समानता है कि दोनों हारते कभी नहीं...।

2 टिप्‍पणियां:

  1. सही कहा आपने अंकुरण और आदमी में एक समानता है कि दोनों हारते कभी नहीं...

    आपका चिंतन सार्थक है और लेखन जादुई ...

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    1. जी बहुत आभार वर्षा जी...हम जीतना जानते हैं बस हारने को अपना लेते हैं और हार जाते हैं जबकि ये भी सत्य है सबसे मजबूत भी हम ही हैं।

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