पत्थरों से बतियाती है क्रोधित नदी


किसी नदी के भीतर पत्थरों का शोर कभी सुना है, सुनियेगा क्योंकि वह शोर सामान्य नहीं होता। वार्तालाप होता है बहती हुई नदी और पत्थरों के बीच। नदी के साथ बहते पत्थरों के जिस्म बेशक कई बार चोटिल होते हैं लेकिन वे परवाह किए बिना नदी की सुनते हैं। तेज और गुस्सैल नदी पत्थरों से कहती है और पत्थरों से ही बतियाती है क्योंकि उसके क्रोध के शब्द और भाषा केवल पत्थर समझ सकते हैं। वे रोकते हैं उस नदी को उसके क्रोध को उसके चीख और समझाने का भी प्रयास करते हैं कि ये धरा तुम्हारे नेह से अंकुरित होती है, यहां असंख्य अंकुरण तुम्हारे नेह के कारण हैं। तुम्हारे क्रोध से ये अंकुरण हमेशा के लिए तहस नहस हो सकते हैं। क्रोध और गुस्सा वैसे भी नदियां का काम नहीं है, लेकिन पत्थर ये भी कहते हैं कि तुम्हें समझाइश के लिए यूं चीखने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि तुम्हारी इस चीख में सदियों बहरी जाएंगी और ये संसार कुछ भी समझ नहीं पाएगा। तुम्हारा शांत जल जीवन दे रहा है, उम्मीद दे रहा है, जीना सिखा रहा है, हम समझते हैं कि मानव की ये दुनिया तुम्हें और तुम्हारे नेह को भूलती जा रही है, कोई बात नहीं यदि तुम्हें क्रोध करना है तो हम पत्थर हैं हमें उछाल दीजिए लेकिन इस धरा पर अपना वही चेहरा, वही पहचान कायम रखिये जिससे जीवन महकता है, उम्मीद पाता है। तेज बहती नदी कहती है देखो तो सही मेरे जिस्म में प्लास्टिक भरा जा रहा है, क्या में इसीलिए इस धरा को पोषित कर रही हूं, पत्थर कहते हैं ये मानव समझेगा और तुम्हें बचाएगा भी, बस तुम क्रोध न करना। पत्थरों  का दर्द सुनकर विनम्र हो जाती है और सहज होकर प्रवाहित होने लगती है। 



Have you ever heard the noise of stones inside a river, will listen because that noise is not normal. Conversation takes place between a flowing river and stones. The bodies of stones flowing along the river are of course injured many times but they listen regardless of the river. The swift and angry river speaks with stones and utters itself with stones because only the words and language of its anger can understand it. They stop the river to scream its anger and also try to convince them that this stream sprouts from your Nehru, there are innumerable sprouts here because of your Neh. These sprouts can be destroyed forever by your anger. Anger and anger are not the work of rivers anyway, but the stones also say that you do not need to scream like this because you will be deaf for centuries in this scream and this world will not understand anything. Your water is giving life, giving hope, teaching us to live, we understand that this human world is forgetting you and your soul, no matter if you want to be angry then we are stones. But on this earth, maintain your same face, the same identity, which makes life important, gets hope. The fast flowing river says, see if plastic is being filled in my body, is this why I am nurturing this earth, the stone says it will be understood by humans and will save you too, just do not make you angry. Hearing the pain of the stones, one becomes humble and starts to flow easily.


8 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 21 फरवरी 2021 को साझा की गई है.........  "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. बहुत ही सुंदर हृदयस्पर्शी सृजन।
    सादर

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  3. मानव का गुस्सा पत्थरों पर उतारती है ! बेचारे पत्थर यहां घुन बन जाते हैं, मजबूरन पिसना पड़ता है

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  5. संदीप जी, नदी को यदि जुबाँ मिल जाती तो शायद वह अपने मनसखा और अपने अस्तित्व के अभिन्न रूप पत्थरों से यही बतियाती और अपनी व्यथा या आह्लाद बांटती। पर आज की नदियाँ प्रदूषण की सताई तांडव मचाती है तो पत्थर उसके कोप का शिकार बनते हैं। अच्छा लिखा आपने।
    एक प्रार्थना नदी के नाम करें---
    नदिया ! तू रहना जल से भरी
    सृष्टि को रखना हरी भरी ,
    झूमे हरियाले तरुवर तेरे तट
    तेरी ममता की रहे छाँव गहरी!!

    देना मछली को घर नदिया ,
    प्यासे ना रहे नभचर नदिया ;
    अन्नपूर्णा बन - खेतों को -
    अन्न - धन से देना भर नदिया !

    हों प्रवाह सदा अमर तेरे -
    बहना अविराम न होना क्लांत ,
    कल्याणकारी ,सृजनहारी तुम
    रहना शांत ना होना अशांत!
    पुण्य तट तू सरस , सलिल ,
    जन कल्याणी अमृतधार -निर्मल ;
    संस्कृतियों की पोषक तुम
    तू सोमरस पावन गंगाजल !!
    हार्दिक शुभकामनाएं

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