शुक्रवार, 5 फ़रवरी 2021

रंगमंच

 कहानी...


ये मुखौटे कहां रख दिए हैं रहीम, कहां चले गए हो भाई्? देखो ये इस तरह मुखौटे कहीं भी मत रखा करो। तुम जानते हो कलाकार आने ही वाले हैं और उन्हें ये मुखौटे पहनना हैं। मास्टरजी आप भी कब तक इन टूटे हुए मुखौटों के सहारे अभिनय का गुर सिखाते रहोगे। ‘छोटा मुंह बड़ी बात’ लेकिन अब तो समय ये है कि राह चलते चेहरे बोलते हैं ऐसे में इन भावविहीन मुखौटों को लगाने की सोचना क्या पुरानी बात नहीं हो गई? 

मास्टर रामानंद उसकी बात सुनते रहे और कुछ देर खामोश रहने के बाद बोले बहुत अच्छा बोलता है लेकिन ये जो रंगमंच है ना, यहां अच्छे-अच्छे कलाकारों के चेहरों का पानी उतर जाता है। रहीम बोला मास्टरजी मैं तो आपके सामने बच्चा हूं और आपसे सीख ही रहा हूं लेकिन इसे मेरी बुरी आदत मान लीजिये कि अपने मन की तो मैं दबा नहीं सकता हूं। मास्टरजी बोले बेटा तू मेरी बात ध्यान से सुन जो चेहरे तुझे बोलते नजर आते हैं कभी उनसे अकेले में बात करने की कोशिश की है, करके देखना वे बोलना भूल जाएंगे क्योंकि जिसे तू चेहरों की बोली समझ रहा है दरअसल वो आज की आपाधापी भरी जिंदगी के सवालों की उलझनें हैं जिन्हें सुलझाने वाली स्थिति चेहरों पर हर पल नए भाव लाती है। मुझे खुशी है कि तू चेहरों को पढ़ने की कला तो सीख चुका है। चल अब इस मुद्दे पर कभी और बात करेंगे लेकिन तू उन मुखौटों को सही जगह संभालकर रख दिया कर। 

रहीम हाथ में पंछा लेकर पुरानी सी लकड़ी की अलमारी की ओर मुड़ा लेकिन अगले ही पल पलटकर खड़ा हो गया। माफ करना मास्टरजी मैं ये तो पूछना भूल ही गया कि बोलते चेहरों पर ये सपाट मुखौटे चढ़ाकर क्या हम हकीकत को ढांकने की कोशिश नहीं करते। मास्टरजी ने मोटा सा चश्मा आंखों पर चढ़ाया और बोले सारा ज्ञान आज ही ले लेगा या कुछ बाद के लिए भी छोड़ेगा, चल तू पूछ ही रहा है तो बता देता हूं। रंगमंच पर बोलते चेहरों का अपना सम्मान है लेकिन कुछ अभिनय ऐसे भी होते हैं जिनमें चेहरों को बोलने की आजादी नहीं होती। उन्हें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता उस समय नहीं दी जा सकती जब भावहीन चेहरों को जिंदगी का सबक पढ़ाना हो। रहीम सिर हिलाने लगा तभी मास्टरजी बोल पड़े अरे समझा या यूं ही दब्बू बच्चे के तरह सिर हिला रहा है, उसने सिर खुजाया और बोला कुछ रह गया है, चलो मैं बाद में पूछ लूंगा। मास्टरजी मुस्कुराए और काम में जुट गए। 

रहीम मुखौटों से भरी बड़ी सी पोटली को कांधे पर टांगे मंच की ओर बढ़ने लगा तभी मास्टरजी बोले अब ये क्या लेकर आ रहा है। रहीम बोला मास्टरजी इसमें मुखौटे ही तो हैं। अरे मुखौटे! इस तरह भरकर रख दिए थे क्या? निकालो, जल्दी से निकालो देखो भला हालत क्या हुई है। 

अरे ये तो रहमदिल इंसान का मुखौटा है लेकिन ये तेरी पोटली है या ये बिगड़ैल दुनिया। देख इसने इस रहमदिल इंसान के मुखौटे की क्या हालत बना ही है अब ये बेईमान सेठ लगने लगा है। अरे और ये क्या नेता का मुखौटा यहां ऐसे दबाकर क्यों बांधा है अरे इसके तो गले पर फंदा है। रहीम तू कैसा व्यक्ति है बड़े-बड़े नेता जो घोटालों में फंस रहे हैं वे आजाद हैं लेकिन तूने इस नेता के सच्चाई बयां करने वाले मुखौटे को फांसी लगा रखी है। ये क्या समाजसेवी का चेहरा और इस पर इतनी अधिक कालिख ? अरे भाई रहीम ऐसे तो तू मेरी इस मुखौटों वाली कायनात को मिटाकर ही रख देगा। समाजसेवी तो उजले विचारों वाले होते हैं लेकिन तेरी इस पोटली में उस पर कालिख आखिर लगी भी तो कहां से। अरे वाह रे रहीम तेरे भी क्या कहने, ये देखो भ्रष्टाचारी नेता का मुखौटा कितनी अच्छी तरह से सहेजकर रखा है मजाल है एक भी सलवट तो आ जाए। रहीम मैं ये बात समझ गया हूं कि भ्रष्टाचारी को बांधना आसान नही है उससे बचने के लिए बड़े हौंसले की आवश्यकता है। अब नजर जोकर के मुखौटे पर पड़ी वह अब भी उसी हालत में था, देखकर हंसी आ गई। रहीम ये जोकर का मुखौटा देख तो सही कैसे उस नेता की टोपी के पीछे से झांक रहा है, अरे जोकर है तू जोकर बनकर क्यों नहीं रहता। तेरी इस हरकत में भले ही ईमानदारी छिपी हो लेकिन लोग तो हंसेंगे ही। तू सच भी बताएगा तो भी लोग उसे मजाक ही मानेंगे। अरे ये कलाकार का मुखौटा तो यहां भी परेशानियों में जकड़ा हुआ है। इसके मस्तक पर देखो जितनी लकीरें पिछली बार थीं उससे कहीं अधिक हो गई हैं। 

अरे रहीम बता तो सही ये क्या, रहीम बोला क्या हुआ मास्टरजी। मास्टरजी बोले अरे ये मुखौटा तो मैंने पहले कभी नहीं देखा। रहीम ये किसका मुखौटा तूने इस भीड़ में शामिल करने की कोशिश की है। रहीम बोला माफ करना मास्टरजी आपसे पूछे बिना ही मैंने एक आम आदमी भी इसमें शामिल कर दिया है, मुझे लगा हर नाटक, कहानी उसी के पेट से होकर निकलती है। मास्टरजी ने रहीम को पास बुलाया और गले से लगा लिया। चलो अब जल्दी से इन पर कपड़ा मारकर साफ कर दे वरना कलाकार आ जाएंगे और बातों में लग जाएंगे। 

मास्टर रामानंद शहर के पुराने मंचीय कलाकार थे, वे मंच को ही अपनो भगवान मानते थे। कला के लिए जीते और उसी में रमे रहते। उनका शार्गिद रहीम भी उन्हीं के पदचिन्हों पर चल रहा था। मास्टर रामानंद के बल पर कभी कभार ही सही मंच और मंचन की चर्चा का दौर चल पड़ता था वरना  अपनी सनकी सी जिद पर जीने का आदी हो चुका था। कोई किसी की नहीं सुन रहा था। मास्टरजी बाहर के बड़े हॉल में नाटक ‘तुम्हारी भी जय, हमारी भी जय’ की तैयारियों में जुटे हुए थे। रहीम बोला ये तो बताईये मास्टरजी कि ये जो नाटक का मंचन हम यहां करने जा रहे हैं वो किस पर आधारित है। मास्टरजी बोले अरे तू समझ नहीं रहा है ये दुनिया में अब एक तीसरा वर्ग भी पैदा हो गया है। तीसरा वर्ग! इसका मतलब क्या है मास्टरजी ? अरे एक वर्ग तो ईमानदार है जो कम होकर गिनती का रह गया है, उनमें से भी कुछ बोलते नहीं और कुछ बोलते हैं तो उन्हें खामोश कर दिया जाता है। दूसरा वर्ग हो भ्रष्टाचारियों का हो गया, वो किसी की सुनते नहीं। तीसरे वर्ग की बात करें तो ये वो है जो न पूरी तरह से ईमानदार है और न ही पूरी तरह से बेईमान। ये सबसे घातक लोग हैं जिनसे पार पाना होगा। यही वो वर्ग है जो आगे बढ़कर पूरी तरह से भ्रष्ट बन जाता है। हमें उस गांठ को दिखाना है जो इस वर्ग को बढ़ावा दे रही है। रहीम बोला अरे मास्टरजी मुझे ये नहीं समझ आ रहा है कि अब हम नाटक में गांठ कहां से दिखाएंगे। मास्टरजी बोले बेटा जीवन में कुछ बंधनों में गांठ पड़ जाती है जिन्हें खोलना मुश्किल ही नहीं असंभव हो जाता है। अरे मास्टरजी समझ गया आप उस गांठ की बात कर रहे हैं। बेटा तू अभी कुछ भी नहीं समझा खैर, अपने हाथ तेजी से चला हमें बहुत सा काम करना है। 

रहीम बोला मास्टरजी एक बात तो बताईये मुझे भी छोटा सा रोल दे दीजिये। अरे तू कहां नाटक कर पाएगा। तेरी सबसे बड़ी गलती क्या है पता है तू बोलता बहुत है। मैं तुझे एक रोल दे सकता हूं लेकिन वो खामोश रहने का है। तुझे लगातार ढाई घंटे तक मौन रहने का अभिनय करना पड़ेगा कर पाएगा। हां मैं कर सकता हूं आप एक बार भरोसा करके तो देखिये। मास्टरजी बोले तू जिद कर रहा है तो मैं तुझे आम आदमी का रोल दे देता हूं। वो आम आदमी का मुखौटा जो तू लाया है उसे लगाकर देख। अरे मास्टरजी मुझे मुखौटे की जरुरत नही है देखना मेरा चेहरा ही बोलेगा। 

अरे रहीम दो दिन बाद ही मंचन होना है और तैयारियों के नाम पर ये खाली मंच हमारे पास है। लो वो कलाकारों की पूरी टीम आ गई। बारी-बारी से सभी ने मास्टरजी के पैर छूए। मास्टरजी बोले देखो ये शो बहुत दिनों बाद हो रहा है। नई स्टोरी है इसका जितना अधिक अभ्यास करेंगे उतना ही अच्छा करके दिखा पाएंगे। सभी के हाथों में अपने-अपने संवाद के कागज थमा दिए गए। नेता बना हरमन टोपी को उलट-पलटकर देख रहा था और संवाद के कागज को लेकर वो कुर्सी पर जा धंसा। मास्टरजी बोले हरमन तुम एकदम सही जा रहे हो, कुर्सी की चिंता तो नेता को ही है बाकी लोग तो देखो वो बेचारे दरी पर बैठकर अपने संवाद रट रहे हैं। रहीम की आवाज आई अरे मास्टरजी मुझे भी तो संवाद दीजिये मुझे क्या वाकई कुछ नहीं कहना है। पहले ही बता चुका है तुझे कुछ नहीं बोलना है। बस तेरा चेहरा बोलेगा और अंत में तुझे पागल होकर ठकाके लगाना है और मुस्कुराते हुए चुप हो जाना है हमेशा के लिए। कोकिला बोली मुझे आपने समाजसेवी की जिम्मेदारी निभाने को दी है लेकिन मेरे लिए करने को तो कुछ भी नहीं है। मास्टरजी बोले अरे कोकिला तुम समझ नहीं रही हो, अब किसी के लिए भी करने के लिए कुछ भी बचा ही कहां है। समाजसेवी को इसी तरह रहना होगा। 

नाटक के मंचन की तैयारियां शुरू हो चुकी थीं। मंच को सजाने की जिम्मेदारी भी कुछ लोगों को सौंप दी गई थी। बाहर बैठक व्यवस्था में इस बार कुर्सियां नहीं रखीं जाएंगी क्योंकि पिछली बार कुर्सियों ने यहां भी विवाद करवा दिया था तभी मास्टरजी ने कहा था कि अब मेरे किस शो में कुर्सियां नहीं होंगी। केवल बिछायत ही होगी, चाहे वीआईपी हो या आम आदमी। सब एक साथ एक तरह से ही बैठेंगे। नाटक की फायनल रिर्हसल हो गई।  

आखिर शो शुरु हो गया। पर्दा उठता है हाथों को भींचे हुए नेताजी जग्गन भाई चीखते हुए चले आते हैं इस बार देखते हैं कि कौन है जो हमें पछाड़ने के लिए आगे आया है। पीछे से भीड़ की नारेबाजी शुरू हो गई। नेता के साथ चलने वाले एक अदने कार्यकर्ता ने कहा भाईसाहब देखो तो जरा ये लोग आपका विरोध कर रहे हैं। नालायक कहीं के, ये क्या जानें कि आपने इनके लिए क्या कुछ नहीं किया है? नेताजी का गर्व से सीना चौड़ा हो गया और उन्होंने उस चमचेनुमा कार्यकर्ता को गले से लगा लिया। नेताजी ने माइक संभाला और बिना किसी अभिवादन के सीधे शुरु हो गए। ये एक और चुनाव है और आप तो जानते हैं कि ये पूरा क्षेत्र मेरा है। अब ये भी बताने की आवश्यकता तो नहीं है कि मुझे हराने की तो कोई सोच भी नहीं सकता। तभी नारेबाजी करती भीड़ में से उठकर आम आदमी मंच पर आ बैठा। नेताजी की नजर उस पर गई और बोले देखो ये देखो हमारा स्नेह। हम अगर आम आदमी के नेता नहीं होते तो क्या ये इस तरह हमारे मंच पर चढ़ने की हिम्मत कर सकता था। वो आदमी गूंगा था केवल इशारा ही कर सकता था। पेट की ओर इशारा किया कि बहुत जोरों से भूख लगी है। उस आम आदमी का चेहरा रुंआसा हो गया। नेता ने उसके गूंगे होने का फायदा उठाते हुए कहा देखो आपके ही बीच का ये व्यक्ति बिना कुछ कहे कितनी बड़ी बात कह गया कि हमारे रहते इसे भरपेट भोजन मिला है। वो व्यक्ति नेता की ओर इशारा करता कभी पेट की ओर। दर्शकों ने तालियां पीट दीं। 

मंच पर से नेताजी उतर चुके थे। नेताजी के पक्ष में प्रचार करने वाले दो छुटभैया नेता चर्चा करने लगे। अरे ये चुनाव भी भाईजी ने ही मारा समझो। दूसरा बोला यार वो कुछ लोग जबरन की टसन ले रहे हैं। भाईजी को समझाकर उसका मुंह टुड़वा दूं क्या? अरे तू अभी खामोश हो जा वो भाईजी ने कहा है चुनाव में जब तक वो नहीं कहेंगे कुछ नहीं करना है। भाईजी कहते हैं अभी तक हवा उनके पक्ष में ही चल रही है। मंच पर दूसरी ओर से लल्लन भाई के कुछ कार्यकर्ता नारेबाजी करते हुए निकले। एक के हाथ में छोटा पॉकेट रेडियो था जिस पर भारत-वेस्टइंडीज टीम के क्रिकेट मैच की कामेंट्री चल रही थी। आधा ध्यान नारेबाजी पर और आधा मैच पर। जीतेगा भाई जीतेगा लल्लन भाई जीतेगा। जग्गन भाई के कार्यकर्ता बोले अरे ये लल्लन के लोगों के भी खूब ‘पर’ निकल आए हैं, अरे चुनाव बाद सबके ‘पर’ बारी-बारी से कतर देंगे। बस भाईजी जीत जाएं। 

मंच पर आम आदमी का प्रतीक वो बेहताशा होकर भीड़ के पीछे दौड़ता है। हाथ में कुछ कागज थे और चेहरा पसीने से भीगा हुआ। दूर से नेताजी के भाषण की आवाज आ रही है। अब हर गरीब की सुनी जाएगी। गरीबों की समस्याएं हमारी अपनी हैं, उनके घरों में अंधेरा है तो समझो हमारी दुनिया अंधकार में है। एक भी व्यक्ति हमारी पहुंच से दूर नहीं रहेगा। वो गूंगा व्यक्ति भीड़ से आगे जाने की कोशिश करता है तभी एक मजबूत सा हाथ उसे धकेल देता है। मंच पर गिरने की आवाज के साथ ही उसकी सिसकियां शुरू हो जाती हैं। अगले ही पल वो सिसकता हुआ उकड़ू बैठकर पसीना पोंछता है और नेताजी के भाषणों की विपरीत दिशा में चल पड़ता है। अगले ही पल लल्लनभाई कार्यकर्ताओं के साथ दौरे पर निकलते हैं। कड़क कुर्ता जो झुकने की कतई इजाजत नहीं दे रहा था। सामने झोपड़ी के बाहर बैठा आम आदमी उसे देखकर सहम जाता है। कार्यकर्ता दूर से ही आवाज लगाता है देख आज तेरी किस्मत खुल गई तेरे दरवाजे भाई आए हैं, मांग ले कुछ मांगना है। वो सहमा हुआ उठा और घर के अंदर गया हाथों में कागज निकलाकर दरवाजे तक पहुंचा कि लल्लन भाई काफी दूर दूसरे दरवाजे पर महिला के पैर छू रहे थे। कार्यकर्ता ने डंडा दिखाते हुए धमकाया ध्यान रखना वोट लल्लनभाई को मिलना चाहिए। वो एक बार फिर डरा-सहमा उकड़ू बैठ गया। 

मंच पर दोनों नेता लल्लनभाई और जग्गनभाई नजर आते हैं। क्यों लल्लन बहुत बड़े नेता हो गए हो, भूल गए का तुम हमारी ही क्लास में पढ़कर निकले हो। अरे जग्गनभाई अब समय बदल गया है। अब चेला शक्कर नहीं बल्कि मिठाई की दुकान होता है। दोनों के कार्यकर्ता मूछों पर हाथ फेरते हुए एक-दूसरे को घूर रहे थे। दोनों ने एक-दूसरे को गले से लगाया और कार्यकर्ताओं को दूर चले जाने को कहा। पर्दे के पीछे से आम आदमी झांक रहा था। जग्गन बोले देख लल्लन ये चुनाव मुझे जीत जाने दे, तू अपना नाम वापस ले ले। अगले चुनाव में तेरी जीत पक्की। इतना नहीं पांच खोका तेरे घर पहुंच जाएगा। अभी तू मलाई खा और राजनीति को समझ। लल्लन बोला ठीक है तुम ठहरे लल्लन के गुरु अब तुम्हारा कहना तो हम नहीं ना टाल सकत हैं। आम आदमी एक बार फिर सकते में आ गया। बस अगले ही दिन लल्लन ने अपने कार्यकर्ताओं को प्रचार करने से मना कर दिया और खामोश बैठ गया। चुनाव हो गया और जग्गन भाईजी जीत गए। जीतकर बड़े ही जोश के साथ लोगों के बीच पहुंचे। वो गूंगा आदमी अपने कागज लिए अब भी कतार में खड़ा था। नेताजी को उनके लोगों ने ऐसे घेर रखा था जैसे वो कहीं का कोहिनूर हीरा थे और जिसके चोरी हो जाने का भय था। 

चुनाव जीतने की खुशी में पार्टी रखी जाती है। जग्गन और लल्लन के हाथों में गिलास थे वे नशे में झूम रहे थे। वो आम आदमी एक बार फिर अपनी पीड़ा लेकर उस पार्टी में पहुंचा। वो अपनी बारी का इंतजार करने के लिए सजे हुए पेड़ के नीचे पत्थर पर बैठ गया। एक कार्यकर्ता आता है और उसकी बांह पकड़कर खड़ा कर देता है अरे तू कौन है और यहां तेरा क्या काम, चल चलता बन वरना भाईजी का मजा किरकिरा हो गया तो तेरी गर्दन उतरवा लेंगे। ये बात सुनकर वो बुरी तरह डर गया। उसने वो कागज दिखाते हुए इशारा किया ये जग्गन भाईजी को देना चाहता है लेकिन उस लठैत ने एक नहीं सुनी। वो रोता रहा, पेट पर हाथ फेरता गिड़गिड़ाता रहा लेकिन कोई देखने वाला नहीं था। वो भोजन का इशारा कर रहा था तभी पीछे से होटल का वेटर भरी प्लेट खाना लेकर आया और कूढ़ेदान में डाल गया। लठैत ने पूछा अरे क्या हो गया इतना भोजन क्यों फैंक रहा है वो बोला भाईजी ने ये भोजन अपने कुत्ते के लिए बनवाया था उसने जब इसे सूंघा तक नहीं तो मुझे फैंकने के आदेश दे दिए। अब उसके लिए दूध का हलवा बना रहा हूं। वो आम आदमी दोनों की बात सुनकर बार-बार जीभ घुमा रहा था तभी एक नजर उस लठैत की पड़ गई उसने एक जोरदार लात उसके पेट में मारी। भिखारी कहीं का, तेरे वोट से जीते हैं क्या हमारे भाईजी? वो तो अपने कौशल से चुनाव जीते हैं। लात का दर्द सीने में लेकर वो उठा और कुछ चलने के बाद अपने बालों को पकड़कर जोर-जोर से कूदने लगा। कभी सिर को पीटता तो कभी छाती को। नजदीक रखे पत्थर पर बैठकर वो हंसने लगा। लठैत को और गुस्सा आया उसने दो लाठी और टिका दी। वो जमीन पर जा गिरा और हंसता हुआ मौन हो गया। अंदर लल्लन भाई भोजन में से हड्डी निकालकर जग्गनभाईजी के कुत्ते को खिलाकर ठहाके लगा रहे थे। लठैत ने आदमी की मुट्ठी से वो कागज छीना और खोला- मैं और मेरा परिवार चार दिनों से भूखा हूं, मुझे और मेरी पत्नी को एक आसाध्य रोग ने घेर लिया है। काम कुछ नहीं है और करने की हिम्मत भी नहीं है। दो बच्चे हैं उनकी भूख देखी नहीं जाती। महंगा अनाज खरीदने के लिए मेरे पास रुपए नहीं हैं। आप मेरे परिवार पर रहम करो। कागज पढ़़ने के बाद लठैत ने एक नजर उस आदमी पर डाली और दूसरी नजर अंदर पार्टी में झूम रहे जग्गनभाईजी पर। उसने वो कागज के कई सारे टुकड़े किए और आदमी के उपर फैंककर वहां से चला गया। पर्दा गिर जाता है। तालियों की गड़गड़ाहट रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी। 

सभी उस आम आदमी के किरदार निभाने वाले रहीम से मिलना चाहते थे। आम आदमी के किरदार की ही चर्चा हॉल में हो रही थी। मास्टरजी दौड़ते हुए मंच पर आए। दूसरे सभी साथी एक-दूसरे से लगे मिलकर अच्छे शो की बधाई दे रहे थे। रहीम अब भी जमीन पर ही पड़ा हुआ था। मास्टरजी ने पास आकर कहा अरे तू तो बहुत बड़ा कलाकार बन गया रहीम। आम आदमी बनकर तू कितना चर्चित हो गया बाहर चलकर देख। दर्शक तेरे ही बारे में चर्चा कर रहे हैं। रहीम उठ भी जा बेटा ये मसखरी बहुत हो गई। शो हो गया है और बाहर दर्शक तेरा इंतजार कर रहे हैं। मास्टरजी की इतनी बात सुनकर भी जब रहीम नहीं उठा तो उन्होंने उसे हाथ से हिलाया लेकिन ये क्या वो तो अब इस दुनिया से विदा हो चुका था। मास्टरजी ने उसे खूब हिलाया, साथी कलाकार उसे घेरकर खड़े हो गए। मंच की पर्दा व्यवस्था संभालने वाले में भी खलबली मच गई वो रस्सी छोड़कर आ पहुंचा। उसके हटते ही मंच पर्दा एक बार फिर हट गया। खड़े हुए दर्शक एक बार फिर अपनी जगह पर बैठ गए। आवाज आई अरे अभी एक्ट खत्म कहां हुआ है- मंच पर मास्टरजी उसे उठाने के लिए जोर-जोर से हिलाने लगे। रहीम उठ जा बेटा, ये तू क्यों कर रहा है, मुझ बूढ़े को इतना गहरा दर्द मत दे। रहीम नहीं उठा तो मंच पर चीत्कार बढ़ गया। मास्टरजी बोले अबे रहीम तू तो बड़ा ही कलाकार निकला, मैंने तो तुझे आम आदमी की पीड़ा दिखाते हुए मूक रहकर अंत में दम तोड़ने के अभिनय की बात समझाई थी लेकिन ये क्या तू तो हकीकत में हमें छोड़कर चला गया। दर्शक स्तब्ध थे कमरे में गहरा सन्नाटा पसर चुका था। आम आदमी की मौत पर खासो-आम खामोश खड़े ये हकीकत देख रहे थे। मास्टरजी उठकर खड़े हुए और अपने हाथों से मंच का पर्दा खींचकर बंद किया। मास्टरजी धीमे सुर में बोले तू तो इस रंगमंच का सबसे मंझा हुआ कलाकार निकला, ऐसा अभिनय कर गया कि ये रंगमंच हमेशा तेरा ऋणी हो गया। रहीम के शव को घेरकर सारे कलाकार बैठे थे, लाइट इफेक्ट धीमा होता हुआ स्याह काला हो गया और रहीम एक गहरे शून्य में समा गया। 

अगले दिन नाटक और उसमें हुई घटना की सर्वत्र चर्चा हो रही थी। खबर में पढ़कर लोगों को पता चला कि दरअसल आम आदमी का अभिनय कर रहे रहीम को दिल का दौरा पड़ा था। डॉक्टरों ने कारण बताया वो उस माहौल में पूरी तल्लीनता से डूब गया था और मंच पर जो भी हुआ उसका दर्द उसके लिए असहनीय साबित हुआ और उसने दम तोड़ दिया। हॉल में मास्टरजी अकेले बैठे थे उन्होंने मुखौटों के उस ढेर में से आम आदमी का मुखौटा निकाला और उसे टकटकी लगाए देखते रहे, रह रहकर वे अपना सिर पीछे की ओर घुमा रहे थे लेकिन आज रहीम नहीं था और उसके सवालों का कोलाहल भी नहीं था। अब केवल एक गहरा शून्य था। मास्टरजी ने आम आदमी के मुखौटे को दोनों हाथों से पकड़कर भींच लिया  लेकिन उसकी रोनी शक्ल देखकर बाजू में टेबल पर रख दिया। मास्टरजी लंबी सी कुर्सी पर लेट गए तभी बिजली बंद हो गई लेकिन मुखौटों पर खिड़की के बाहर से मरक्यूरी की रोशनी पड़ रही थी वे सभी एक-दूसरे में गुत्थम-गुत्था हो चुके थे। दूर टेबल पर आम आदमी का मुखौटा बदहवास सा दूसरे मुखौटों पर नजरें गढ़ाए हुए था...वो अपनी मौत पर हक्का-बक्का था। 

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