उम्रदराज़ होकर जब थककर सराबोर हो जाते हैं और कभी यादों की खिड़की खोलकर हम कुछ पल सुस्ताने लगते हैं तब अक्सर बचपन याद आ ही जाता है...। कितने मासूम से सवाल, चटख रंगों की कल्पना और मन की आकृतियां...। कहां खो जाता है बचपन, उम्र बढ़ने पर बचपन की खिड़की हमेशा के लिए बंद क्यों कर दी जाती है, क्यों एक कतरा बचपन भी नहीं बचता हमारे भीतर...। ओह आज जब हमारे भ्राता और अज़ीज़ मित्र राजेंद्र नेगी जी की मासूम सी बिटिया तनीशी का आर्ट देखा तो विषय भी लौटा और बचपन भी...। आप भी देखिए उम्र के आरंभिक दौर का ये मिजाज़... अहा। गजब कल्पना और गजब रंग संयोजन। हमें लगता है उम्रदराज़ होकर हम जो एक दुनिया बसाते हैं वह हमारे अनुसार श्रेष्ठ है लेकिन हकीकत यह है वह बहुत उलझन भरी, ठसाठस, दिखावे वाली और बेबसी से भरी हुई है। नासमझ बचपन की दुनिया कितनी खूबसूरत है और कितनी चटख रंगों वाली, देखिए हर तस्वीर कितना खूब कह रही है। सोचता हूँ यह बचपन यदि जिंदगी की इबारत है तो बिसरा क्यों दी जाती है, क्या विवशता है कि हम उसमें लौटने के लिए भी संकोची हो जाते हैं... । बचपन समझेंगे नहीं तो बच्चों को कैसे समझेंगे और उन्हें बचपन कहां से देंगे, एक उम्र मासूमियत भरी हम सभी जीते हैं लेकिन हकीकत यह है कि बड़े होते ही हम मन को काठ का बना लेते हैं, सबसे पहले भावनाओं को निचोड़कर उम्र की रस्सी पर सुखा देते हैं, हम यह भी नहीं समझते की हम बचपन को भी सुखा देते हैं, सूखा हुआ बचपन एक पलायन वाले गांव सा ही हो जाता है... यह कैसा पलायन है एक उम्र का बचपन से पलायन...। ओह काश की एक कतरा बचपन हम बचा पाते ...। हम पूरी उम्र एक कुशल कारोबारी की तरह जी जाते हैं, हमें कारोबारी होता देख बच्चे भी गणित सीखते हैं और रंगों की उम्र यदि बेरंग और उसका कैनवस श्वेत ही रह जाता है तो यह पूरी उम्र की हार है....। सोचिएगा कि बेशक उम्रदराज़ होकर हम स्टेटस तो पा लेते हैं लेकिन भावनाओं को सुखाकर मिली इस उपलब्धि पर हम एक जगह तन्हा हो जाते हैं...। खैर जब हम समझदार हो जाते हैं तो किसी की नहीं सुनते, अपने आप की तो कतई नहीं...। बचपन यदि बचपन है, रंगों से भरा है तो वह अवश्य गढ़ेगा... समय, जीवन और उम्र...।
खूब दुलार प्यारी बिटिया तनीशी...। खुशी है कि राजेंद्र नेगी जी ने यह फोटोग्राफ सोशल मीडिया पर गर्व और खुशी के साथ शेयर किये हैं...।