एक वृक्ष...चार पंछी

यह तस्वीर मौजूदा दौर की सबसे खरी अभिव्यक्ति है, हममें से हरेक इसी तरह तो  जी रहा है...। हरेक अंदर से गहरे मंथन में हैं, वृक्ष पर बिना पत्तों की शाखें हैं, पक्षियों के समाज में हमसे जुदा कुछ होता है, वे साक्षी होते हैं और बदलावों को आत्मसात भी करते हैं, लेकिन धैर्य नहीं खोते... शाख और वृक्ष नहीं छोड़ते, अकेले नहीं उड़ते, एक दूसरे के प्रति प्रतिबद्ध... ओह यह सब हमें, हमारे समाज को समझना होगा। कितना अंतर है दो जीवात्माओं में...हम इंसान होकर बेसब्र हो उठते हैं और पक्षी शांत रहते हैं जबकि दोनों उसी प्रकृति में जीते हैं। वे अब तक मौसम बदलने में भरोसा रखते हैं और हम कहीं न कहीं अंदर से हार रहे. हैं, बेजान हो रहे हैं...सोचिएगा कि सूखी शाखें कितनी भयभीत करती होंगी, बावजूद इसके कोई शिकायत नहीं। आपने देखा होगा कि ऐसे भी परिंदे है जो सूखे वृक्षों पर ही घौंसला बनाते हैं, नवजीवन को सृजित करते हैं, वे मौसम के बदलने की राह देखते हैं... हरियाली को देख उस सूखे वृक्ष का त्याग नहीं करते बल्कि उसे हरा होने का हौंसला देते हैं...। समझिए तो जीवन है न समझे तो सूखने वाले एक दिन सूख जाएंगे और जिन्हें हरा होना है वह उम्मीद को जीवित रखते हैं...।

 

16 टिप्‍पणियां:

  1. जीवन के प्रति गहन विचार रखा है । इंसान ज़्यादा ही बेसब्रा हो चला है । न तो इंतज़ार करता है न प्रयास । आपका यह बेहतरीन लेख कल की हलचल पर होगा ।

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  2. जी बहुत आभार आपका आदरणीया संगीता जी।

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  3. गहन चिन्तनपरक एवं विचारणीय लेख ।
    उम्मीद को जीवित रखना ही जीवन है।

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  4. प्रकृति का नियम है उम्मीद और जीवन एक दूसरे पर आधारित होते हैं पर मनुष्य सबकुछ पा लेने की होड़ में प्रकृति पर आधिपत्य जमाकर उसका दोहन करता जाता है उसे चिड़ियों की तरह सूखे वृक्ष में हरियाली की आस नहीं दिखती बल्कि उसे सूखे पेड़ में जलावन दीखता है।
    गहन भावाभिव्यक्ति सर।
    सादर।

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  5. प्रकृति संरक्षण को समर्पित आपकी रचनाधर्मिता को नमन ।

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  6. गहन सोच गहन शोध! बहुत सुंदर।

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  7. सार्थक सन्देश प्रकृति के संरक्षण हेतु !!

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