यह मन उम्मीदों के गुब्बारे जैसा है, हर पल नई उम्मीद, बस खोजता ही रहता है। कई दफा मन की दुनिया हकीकत से उलट सोचती है। मन का आधार भाव और भावनाएं हैं वहीं दिमाग तर्क पर फैसले सुनाता है। सोचता हूँ निर्णय के लिए उस परम पिता ने यह दो तरीके क्यों रखे होंगे। क्या केवल तर्क पर निर्णय ठीक नहीं होते या केवल भावनाओं पर फैसलों पर सवाल उठते हैं? इस दुनिया को उस परमात्मा ने खूबसूरती से रचा है, केवल तर्क की दुनिया सख्त और बहुत सख्त हो जाती तो संभवतः ये मन की दुनिया रचाई... जैसे बिना खुशबू फूल का महत्व नहीं है... वैसे ही जीवन में भाव और भावनाओं का भी महत्व है। मन दिमाग की परवाह नहीं करता और दिमाग मन से बगावत करता रहता है। मन अपनी दुनिया रचता है, बसाता है, बुनता है लेकिन यह भी सच है केवल खुशबू से ही फूल और जीवन सुरक्षित नहीं रह सकते, उसकी सुरक्षा का निर्धारण दिमाग करता है। इन दोनों के बीच सामन्जस्य बैठाना जरूरी होता है। तारतम्यता जरूरी है क्योंकि मन भाव की भाषा जानता है और दिमाग के अपने सख्त अध्याय होते हैं। यह विषय बहुत मंथन का है... ईश्वर ने दोनों दिए हैं तो अर्थ दोनों का है...। समझिए और निर्णय लीजिए।
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मेरी फोटोग्राफी---नज़र का कमाल है
ये नज़र का कमाल है... अक्सर छत की मुंडेर या दीवार पर खुरचना या कुरेदना मानव प्रकृति है... कुरेदते वक्त हम अनायास ही सृजित कर रहे होते हैं, मैंने यही कुछ आज खोजा... जब में इन खुरचनों को देख रहा था उसी समय मुझे इनमें जीवन और कुछ बोलते चित्र नज़र आए...। आप भी देखिए और महसूस कीजिए...। हमारे आसपास बहुत है खुश रहने को...बस हम अपनी नज़र और नजरिया बदल लें...।
अरसा हो गया बारिश में नहाये हुए
उम्र तो उम्र होती है, क्या फर्क पड़ता है, छाता लेकर ही बारिश में निकला जाए जरुरी तो नहीं। कभी छाते के बिना और कभी छाता उल्टा लेकर भी निकलकर द...
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सुबह कभी खेत में फसल के बीच क्यारियों में देखता हूँ तो तुम्हारी बातों के सौंधेपन के साथ जिंदगी का हरापन भी नज़र आ ही जाता है...। सोचता हूँ मु...
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फ्रांस का अध्ययन है कि 2000 से 2020 के बीच ग्लेशियर के मेल्ट होने की स्पीड दोगुनी हो चुकी है ये उनका अपना अध्ययन है, क्या करेंगे ग्लेशियर। स...
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लघुकथा अक्सर होता ये था कि पूरे साल में गर्मी का मौसम कब बीत जाता था पता ही नहीं चलता था क्योंकि घर के सामने रास्ते के दूसरी ओर नीम का घना व...